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हिन्दी पखवाड़ा समारोह मे वरिष्ठो ने रखे अपने विचार

भारतीय भाषाएं नदी है तो हिंदी महानदी - डॉ प्रेरणा मनाना

उज्जैन। जीवन मूल्य संस्कारों संस्कृति की संवाहक संप्रेषण और परिचायक है हिंदी जितनी सरल सुगम उतनी ही वैज्ञानिक है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास महिला कार्य द्वारा हिन्दी पखवाड़ा समारोहपूर्वक मनाया जाने की श्रृंखला में सामान्य जनजीवन में प्रचलित मुहावरे लोकोक्तियों को पुनर्जीवन देने हेतु महिलाओं हेतु प्रतियोगिता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि न्यास की महिला कार्य, राष्ट्रीय संयोजक सुश्री शोभा ताई पैठनकर रही और अध्यक्षता हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक अशोक कड़ेल ने की। राजभाषा विभाग द्वारा कई कार्य हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु किया जा रहे हैं राजभाषा में कार्य करने हेतु राजभाषा गौरव पुरस्कार, राष्ट्रभाषा कीर्ति पुरस्कार। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भी लीला एप का लोकार्पण किया गया था। लर्निंग इंडियन लैंग्वेजेस विद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ताकि देश के सभी भागों में विभिन्न भाषाओं में जो ज्ञान है उसे हिंदी में लाया जा सके हिंदी पढ़ने समझने और सीखने में आसानी हो। कार्यक्रम संयोजक डॉ प्रेरणा मनाना ने प्रास्तविक देते हुए कहा हमारा भी कर्तव्य है कि हम भी इसके प्रचार प्रसार में अपना योगदान दे क्योंकि भारतीय भाषाएं नदी है तो हिंदी महानदी यह टैगोर ने कहा था। मां, मातृभूमि, मातृभाषा और का कोई विकल्प नहीं होता और भाषा वही जीवित रहती है जो जनता के द्वारा उपयोग में आती है इस उद्देश्य से हमारी वर्षों पूर्व दादी नानी की कला जिसमें कि वह बात बात में मुहावरे, कहावतें और लोकोक्तियां का उपयोग करती थी। उसे फिर प्रचलन में लाने के उद्देश्य से शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, महिला कार्य द्वारा लोकोक्ति कहावतें और मुहावरों की प्रतियोगिता आयोजित की गई। 35 प्रतिभागी महिलाओं ने इसमें भाग लिया। कार्यक्रम अत्यंत रोचक, ज्ञानवर्धक और आनंददायक रहा। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए शोभा ताई ने कहा कि, हिंदी बड़ी नायाब है छू लो तो चरण, अड़ा दो तो टांग,धंस जाए तो पैर,आगे बढ़ाना होता कदम, राह में चिन्ह छोड़े तो पद,प्रभु के हो तो पाद ,बाप की हो तो लात,गधे की पड़े तो दुलत्ती,घुंघरू बांध दो तो पग, खाने के लिए टंगड़ी और खेलने के लिए लंगड़ी।।इतनी सरल सुगम वैज्ञानिक भाषा के प्रचार हेतु इसे आयोजन किए जाने की सराहना की।पद्मा जादव द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना ,डॉ विद्या जोशी द्वारा सफल संचालन किया गया और आभार न्यास के प्रांत संयोजक डॉ राकेश ढांढ ने माना।विशेष रूप से डॉ शुक्ला, डॉ जफर मेहमूद, डॉ नीरज सरवन, पलका ढांढ डॉ उमा वाजपेयी, डॉ राजेंद्र गुप्त उपस्थित रहे। प्रस्तुतियां आराधना गंधारा,माया बड़ेक, डॉ रूचिता, सोनाली नाडकर्णी,रागिनी भागवत, सकोरीकर, अनिता पवार, डॉ ममता त्रिवेदी, रत्ना व्यास, लीना शर्मा, सावित्री महंत, समीक्षा व्यास, दीप्ति त्रिवेदी, अनिता पंवार, मनीषा व्यास,रूप सक्सेना,प्रभा बैरागी, रत्ना शर्मा,अनुभा काकडे सहित 35 महिलाओ ने प्रस्तुति दी।

कुछ यह रहा अंदाज….
आराधना गंधरा ने रोचक अंदाज में कहा हिंदी के मुहावरे है बड़े बावरे,आता दाल फल सब्जी से भरे है,फल का आनंद लेते है, आम के आम गुठलियों के दाम,अंगूर खट्टे हैं, दांत खट्टे करना, आटा दाल का भाव पता चलना और कभी दाल नहीं गलना। रूप सक्सेना ने बताया
1.) पासा पलटना ___स्थिति उलट जाना …? पहली टीम अच्छा खेल रही होती है लेकिन दूसरी टीम में अचानक से खिलाड़ी आता है और वह गोल कर जाता है और इस तरह से पासा पलट जाता है, दूसरी टीम जीत जाती है।
2.) आंख का तारा_बहुत प्यारा…. सभी बच्चे अपनी दादी -नानी की आंख के तारे होते है यह दोनों मुहावरे थे।
3.) बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करें_रक्षक का भक्षक हो जाना
4.) बासी बचे ना कुत्ता खाए_जरूरत के अनुसार सामान बनाना
5.) अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता_बड़े आयोजन में अकेले आदमी से काम नहीं होता है, सामूहिक रूप से होता है।
अनिता पंवार ने बताया लोकोक्तियाँ –
1.अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी, अर्थ – दो व्यक्ति हो और दोनों ही मूर्ख या अवगुणी हो।
2. चोर चोरी से जाए हेरा फेरी से न जाए अर्थ – जन्मजात स्वभाव में परिवर्तन कठिन होता है।
3. दुविधा में दोनों गए,माया मिली ना राम अर्थ – एक साथ दो कम करने पर सफलता में संशय होता है।
4. जैसा दूल्हा वैसी बारात, अर्थ – जैसा व्यक्ति होता है उसके साथी भी वैसे ही होते हैं
5. तेते पांव पसारिए, जेती लंबी सोर, अर्थ – आय के अनुसार खर्च करना
सावित्री महंत ने बताया मत व्यथा अपनी सुना तू,हर पराई पीर रे । अर्थात – अपनी पीड़ा सुना कर सहानुभूति प्राप्त करने के बजाय दूसरों की पीड़ा हरण करने की चेष्टा करनी चाहिए।
2, सठ सुधरहिं सत संगति पाई अर्थात _दुष्ट भी सत्तसंगति पा कर सुधर जाते हैं।
3, जीए न मानें पितृ और मुए करे श्राद्ध। अर्थात – यह कुपात्र पुत्रों के लिए है कि जीते जी तो सेवा नहीं करी और अब श्राद्ध कर रहे हैं।
4, जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश अर्थात – _निकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ है और न बाहर रहने से कोई हानि।
5, ढेले ऊपर चील जो बोलै ,गली –गली में पानी डोलै।
अर्थात _यदि चील ढेले पर बैठ कर बोले तो समझना कि बहुत अधिक वर्षा होने वाली है।
माया बड़ेका बोली……
जब किसी वाक्य में मुहावरा प्रयोग होता है तो वाक्य की शोभा बढ़ जाती है। पारसी, कहावतें, पहेलियां, उखाणे, केवाड़ा यह सभी अपना अलग महत्व रखते हैं। यह हमारी धरोहर है जो हमें जीवित रखना आवश्यक है।

लीना शर्मा बोली….
अंधे नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा अर्थ – जहां मालिक मूर्ख होता है वह उनका आदर नहीं होता
2) अपना रख पराया चख अर्थ – निजी वस्तु की रक्षा एवं अन्य वस्तु का उपभोग
3) बाप न मारे मेंढकी बेटा तीरंदाज अर्थ – छोटे का बड़े से भी ऊपर बढ़ जाना
4) गुदड़ी का लाल अर्थ – निर्धन परिवार में जन्मा गुणी व्यक्ति
5) कोल्हू का बैल अर्थ – लगातार काम में लगे रहना
6) निन्यानवे के फेर में पढ़ना अर्थ – धन संग्रह के चक्कर में पढ़ना

मनीषा व्यास ने कहा…..
1.जीखे हीये ज्ञान नी उखे किए ज्ञान नी अर्थ – जिम्मेदारी का अहसास नही होना, वाक्य प्रयोग – नरेश को इतना समझाने पर भी जिम्मेदारी का अहसास नही है।जीखे हीये ( हृदय) ज्ञान नी ऊखे किए ज्ञान नी
2. उधौ का लेना न माधौ का देना अर्थ – केवल अपने काम से काम रखना, वाक्य प्रयोग – मनीषा अपने संगीत में इतनी खोई है कि उसे किसी से कोई मतलब नही ,ना उधो का लेना ना माधो का देना।
3. खुदा गंजे को नाखून न दे अर्थ – नाकाबिल को कोई अधिकार नही मिलना चाहिए, वाक्य प्रयोग – पप्पू प्रधान मंत्री बनना चाहता है परंतु उसे वार्ड का पार्षद बनने का भी ज्ञान नहीं। खुदा गंजे को नाखून न दे।
4. खग जाने खग ही की भाषा अर्थ – साथी की बात साथी समझता है, वाक्य प्रयोग – मेरी परेशानी मेरी सखी अनीता समझती है।खग जाने खग ही की भाषा।
5. गंगा गए गंगादास जमना गए जमनादास अर्थ – अवसर वादी लोग, वाक्य प्रयोग – आजकल के नेता गंगा गए गंगादास जमना गए जमनदास हैं।

प्रभा बैरागी ने कहा….
कान फूंकना – अर्थात दीक्षित करना
डींगें हांकना – र्थात शेखी बघारना
थाली का बैंगन – अर्थात सिद्धांतहीन व्यक्ति
लेना देना साढ़े बाईस – अर्थात सिर्फ मोल तोल करना
पेट में दाढ़ी होना – अर्थात छोटी उम्र में ही बुद्धिमान होना
अपना हाथ जगन्नाथ – स्वयं का काम स्वयं के द्वारा करना

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