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हमे शांति, सुख, प्रसन्नता का आभास कराते हैं वृक्ष

भागती दौड़ती संवेदनहीन, दुनिया में कई बार बहुत कुछ ऐसा होता है कि आप व्यग्र, चिंतित, व्याकुल और स्वयं को दुखी अनुभव करते है। मित्रों, जब भी आपका मन बहुत विचलित हो, सिरदर्द हो, थकान हो, शरीर से लेकर मन तक अत्यंत शिथिलता हो, मन में व्यग्रता हो, आपको लगे शांति मिले, तब एक काम कीजियेगा। अपने आसपास कोई पुराना वृक्ष ढूँढिये। पीपल, आम, बरगद, नीम या कोई भी। पीपल या बरगद हो तो और भी अच्छा लेकिन यह ध्यान रखिएगा कि पुराना हो। न भी पुराना हो तब भी चलेगा, लेकिन वह वृक्ष होना चाहिए कोलाहल से दूर।
बस उसके पास जाईये। बिल्कुल निश्चेष्ट होकर अपने दोनों हाथों से या भुजाओं से उस वृक्ष को गले लगाईये और आँखों को बंद कर लीजिए। लगभग 10 मिनट तक ऐसे ही उस वृक्ष को भुजाओ में भरे रहिए। आँख बंद कर कुछ मत सोचिए, बस उस वृक्ष की धड़कन या उसकी शिराओं में बहने वाली या ऊर्जा को महसूस करिये। ऐसा स्थान चुनिए, जहाँ आपको यह आभास या हिचकिचाहट न हो कि ऐसा करते हुए हमें कोई देख रहा है। बस आँख मूँद कर उस वृक्ष को बाहों में भरकर उससे मन ही मन बात करते हुए उसके आंतरिक नैसर्गिक सौंदर्य को आत्मसात करने का प्रयत्न कीजिये। मात्र 5 मिनट तक संसार के सभी कुछ कार्य भूल जाईये। बस आप और वह आपका चिरंतन मित्र वृक्ष। विश्वास मानिए आपका सारा दु:ख दर्द, शिथिलता, अशांति, भय, व्याकुलता, अवसाद, तनाव, सिर दर्द, थकान सब खत्म हो जाएगा। ऐसी अनुभूति होगी,एहसास होगा जैसे आपकी सारी परेशानी, तकलीफ, पीड़ा, उस वृक्ष ने ले ली हो और उसे अपनी ऊर्जा से नष्ट कर दिया हो। प्रतिदिन का नियम बना लीजिए सुबह और शाम या हो सके तो दोपहर भी । 5-7 मिनट से बढ़ाकर इसे घंटों किया जा सकता हैं। आप यकीन मानिए, यह एक वृहद ऊर्जा स्रोत की तरह कार्य करेगा। आपके कई दबे हुए रोग जैसे मधुमेह,उच्च रक्तचाप, मानसिक अस्थिरता धीरे धीरे खत्म हो जाएंगे। वृक्ष असीम ऊर्जा के स्रोत हैं। यह निरंतर भूमि, जल, आकाश, वायु और तेज से ऊर्जा ग्रहण करते रहते हैं। अगर हम में ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता 2 गुना है तो वृक्षों की इन पाँच तत्वों से ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता हमसे लाख गुना अधिक है। यही पाँच तत्व इस संसार को चलाते हैं। जो कुछ है इस संसार में दिखता है, वह इन्हीं पंच तत्वों से निर्मित है। इन्हीं पंच तत्वों में अनंत ऊर्जा का महासागर है। और हमारे वृक्ष इन पाँच तत्वों के सबसे अधिक नजदीक होते हैं और यह प्रकृति की ऐसी मशीन हैं जो इन पाँच तत्वों से ऊर्जा को सबसे उपयुक्त तरीके से ग्रहण करते हैं। जब हम वृक्ष को गले लगाते हैं या उनके स्पंदन को हृदय से अनुभूत करते हैं, तो यही अज्ञात , अदृश्य ऊर्जा हमारे शरीर में प्रवेश करती है। यही ऊर्जा हमारे शरीर के अंदर प्रवेश करके हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं को अच्छे हार्मोन्स जैसे सेरेटोनिन और डोपामाइन को करने के लिए प्रेरित करते हैं जिससे हम शांति, सुख, प्रसन्नता का आभास करते हैं।
यही ऊर्जा हमारे शरीर में कइ (जैविक प्रक्रियाओं) के लिए भी उत्प्रेरक का कार्य करती है जिससे कई रोगों को जड़ से खत्म होने में सहायता मिलती है । बहुत ही कारगर बात बता रहे है जिसे अपना भला करना हो, वह यह बात मान ले और यह प्रयोग कर के देखे, फिर मुझे बताए। आपके जीवन में आनंद का प्रवेश न हो जाये तो बताना। आज कल तो मॉडर्न बनने के चक्कर में माँ बाप ने अपने छोटे बच्चों को मिट्टी में खेलना तक निषिद्ध कर रखा है। यह केवल और केवल घोर मूर्खता के अलावा कुछ नहीं है। हम कहेंगे कि ऐसे माँ बाप अपने बच्चों के सबसे बड़े दुश्मन ही हैं, जो बच्चों को मिट्टी से दूर रखते हैं। यही बच्चे बताशे के बेना हो जाते हैं और इनका पूरा जीवन डॉक्टरस और अस्पताल के चक्कर लगाते लगाते और दवाईयों पर अपनी कमाई का आधा प्रतिशत लगाने में गुजर जाता है। बीमार होने पर नेचुरोपैथी सेंटर में मोटी फीस देकर शरीर पर मिट्टी लपेटने की मिट्टी चिकित्सा करवाते हैं। गर्व भी है परंतु क्षोभ भी होता है,विदेशों में लोग इस वैदिक तकनीक की महत्ता समझ रहे हैं। वहाँ ऐसे पार्क बनाये गए हैं जहाँ प्रति घण्टा और मिनट के हिसाब से पैसा लिया जाता है । वहाँ लोग आते हैं और पेड़ों को घण्टों तक चिपटाए रखते हैं।

– डॉ. प्रेरणा मनाना, वरिष्ठ शिक्षाविद,
राष्ट्रीय महामंत्री अखिल भारतीय ब्राहम्ण समाज

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