रेल्वे जंक्शन
रेल्वे जंक्शन अपने सीनों में अनगिनत इन्सानी जज्बातों के राज छुपा कर रखते है। कभी कभार नियती रेल्वे जंक्शन को रूहानी जंक्शन भी बना देती है। उमाशंकरजी के साथ भी ऐसी ही घटना घटित हो गई थी। हाल ही में उमाशंकरजी किसी विभाग के उच्च पद से सेवानिवृत्त हुऐ थे एवं उज्जैन से नागदा की ओर यात्रा कर रहे थे। वे अकेले ही थे जिसका कारण नितान्त निजी रहा होगा अतः किसी को कोई जानकारी नहीं थी कि वे अविवाहित क्यों रह गये, पूछने पर टाल जाते थे। उच्च शिक्षित होकर योग्यता के दम पर ही अच्छी नौकरी प्राप्त करके विभाग के प्रमुख के पद तक तरक्की पा गये। कोई भी ऐब या व्यक्तित्व विकार भी नहीं था। सिर्फ पढ़ने के शौकीन थे सो घर नई-पुरानी पुस्तकों-पत्रिकाओं से भरा रहता था। उन्हें नागदा जंक्शन में उतरना था। नागदा जंक्शन से रतलाम, बड़ौदा, सूरत-मुम्बई अथवा शामगढ़, भवानीमंडी, कोटा, भरतपुर, दिल्ली होकर देहरादून तक यात्रा करना सम्भव था। उमाशंकरजी को बम्बई की ओर जाने वाली देहरादून एक्सप्रेस में बैठना था । उस दिन एक ट्रेन लेट होने से अप एवं डाउन ट्रेने एक ही प्लेटफार्म के दोनों ओर खड़ी थी। गलती से उमाशंकरजी दिल्ली जाने वाली ट्रेन के कोच में बैठ गये थे। जैसे ही ट्रेन सरकने लगी वे विचारों में खो गये ओर पता नहीं कब उन्हें नींद लग गयी। वर्षों पूर्व विद्यार्थी जीवन में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर तक एक लड़की उनके संग पढ़ी थी। मित्रता भी थी, परन्तु शादी जैसे बन्धन का प्रस्ताव दोनों ओर से किसी ने भी नहीं दिया। शिक्षा पूरी होने के बाद बार त्योहारों पर दोनों का अपने-अपने घरों पर आना बना रहा. मिलते भी थे। धीरे-धीरे यह भी करीब बन्द ही हो गया। माता-पिता के गुजरने के बाद उमाशंकर जी कभी गृह नगर गये ही नहीं। उनकी कोई बहन या कोई भाई तो था नहीं। कभी पत्रों के माध्यम से नौकरी प्रमोशन जैसी औपचारिक बातें हो जाती थी। यह जानने की कोशिश किसी ने कभी नहीं की कि किसी की भी शादी हुई या नहीं। उमाशंकरजी को लगा कि कोई उन्हें नींद से जगा कर पूछ रहा है कि टिकट दिखाईये। उन्होंने टिकट दिखाया तो टीसी ने कहा अरे आपको तो बडैदा जाना है फिर इस ट्रेन में क्यों सफर कर रहे है। यह ट्रेन तो कोटा, दिल्ली होकर देहरादून तक जाती है। उमाशंकरजी अब नींद से पूरी तरह जाग कर माजरा समझ चुके थे कि वे नागदा जंक्शन में हड़बड़ी में उल्टी दिशा में जा रही देहरादून एक्सप्रेस में बैठ गये थे। वे जुर्माना भरने को तत्पर हुऐ तब टीसी ने स्थिति समझकर कहा कि कुछ देर बाद कोटा जंक्शन में उतर जाईये । वहाँ से वापसी हेतु बड़ौदा मुम्बई की ट्रेने मिल जावेगी। उमाशंकरजी एवं टीटी के वार्तालाप को सहयात्रियों ने भी सुना कुछ हंसे भी किसी ने फिकरा कसा कि कोटा भी जंक्शन है अब सही दिशा वाली ट्रेन ही पकड़ना ताकि सही मंजिल तक पहुँचा जावेंगे। वे कोटा पहुँचने का इन्तजार करने लगे। कोटा जंक्शन पहुँचते ही एक बारूद सी सूखी तीखी आवाज ने उमाशंकरजी को चौका दिया। सुनो यूएस मेरे साथ उतर जाईये यही आपकी सही मंजिल है। उमाशंकरजी के मुँह से उस अधेड़ महिला को देखते ही निकला अरे टीएस तुम । चालीस वर्ष पूर्व त्रिशला शर्मा को उमाशंकरजी टीएस पुकारते थे और त्रिशला उमाशंकरजी को यूएस ट्रेन रेंगते हुए कोटा जंक्शन पर ठहर गयी। त्रिशला उमाशंकरजी को कीमती सामान की तरह उनका हाथ पकड़ कर प्लेटफार्म पर उतर गई एवं स्टेशन से बाहर ले आई। उमाशंकरजी के मन में सवालों – शंकाओं का तूफान उठने लगा। त्रिशला के नारी मन को भांपते देर नहीं लगी वह बोली टेन्शन मत लो यूएस, पैतृक मकान में अकेली रहती हूँ, वीआरएस ले लिया है। तुम्हारा साथ भाग्य में लिखा था सो अब मकान को घर बना लूँगी। आज रेल्वे जंक्शन दिलों को जोड़ चुका था।
डॉ. एच. एस. राठौर